Tuesday, February 9, 2010

पुराना -.फोटोफ्रेम


धुल भरे कांच के पीछे से , ये आँखे कुछ तलाश रही थी
एक मेटल का फ्रेम, धुल में सना हुआ ,
आँखों में दर्द उभर आया , क्या ये वही फ्रेम है जो मैंने तुम्हे दिया था ,
हमारी शादी की पहली सालगिरह पर!
कहाँ गयी उसकी वो चमक,,, 
क्यों धुल की परतों ने उसपर अपना घरोंदा बना लिया है ...
उसमे लगी हमारी ये तस्वीर कुछ धुंधली सी, कई कहानिया कहा रही हों जैसे...
कुछ अनकही बातें जो हमने बांटी थी कभी... 
क्यों किस्मत ने आज अलग कर दिए, रास्ते हमारे!
कहाँ गए वो दिन जब हम साथ रोया करते थे,
आज हम नदी के दो किनारे हों जैसे...
आज एक ही फ्रेम में होकर भी हम आधे क्यों हैं!!
क्यों आज फ्रेम के टूटे हुए कांच की तरह हमारी तस्वीर भी दो नज़र आती है
क्यों एक ही फ्रेम में रहकर भी हम दो नज़र आते है..
आखिर क्यों...
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Susan Matthew

Tuesday, February 2, 2010

The Best Compliment

















Got the best compliment ever, makes it even more special, this coming from Shyama Di, who is one person encouraged me to write in the first place. Shyama Di is an established writer herself.